जनजातीय भाषाओं को मिलेगा पाठशालाओं में सम्मान,
झारखंड सरकार का बड़ा कदम
पश्चिम बंगाल मॉडल के आधार पर बनेगी नई शिक्षा नीति, जिलास्तरीय सर्वे से तय होगा शिक्षक बहाली का खाका
रांची। झारखंड सरकार राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई विरासत को सहेजने की दिशा में अब ठोस पहल करने जा रही है। राज्य के सरकारी विद्यालयों में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाएगा। इस निर्णय का उद्देश्य न केवल भाषाई विविधता को बढ़ावा देना है, बल्कि आदिवासी समुदाय के विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध कराना भी है।
स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता मंत्री रामदास सोरेन ने इस पहल को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि सरकार इस बात को सुनिश्चित करेगी कि जिन जिलों में किसी विशेष जनजातीय या क्षेत्रीय भाषा के छात्र अधिक संख्या में हैं, वहां उसी अनुपात में प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी।
पश्चिम बंगाल से ली प्रेरणा, बनी योजना की आधारशिला
सरकार ने इस दिशा में ठोस नीति निर्माण के लिए पश्चिम बंगाल के शिक्षा मॉडल का अध्ययन किया है। एक पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को एक सप्ताह की अध्ययन यात्रा पर कोलकाता भेजा गया, जहां उन्होंने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक क्षेत्रीय भाषाओं के समावेश को गहराई से समझा। टीम ने अपनी रिपोर्ट शिक्षा विभाग को सौंप दी है, जिसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की समीक्षा के बाद नीति में रूपांतरित किया जाएगा।
सर्वे में गड़बड़ी, अब होगा नया जिला स्तरीय सर्वेक्षण
पूर्व में राज्य स्तर पर छात्रों की भाषाई पृष्ठभूमि को लेकर एक सर्वेक्षण कराया गया था, लेकिन उसमें कई गड़बड़ियां सामने आईं। कई छात्रों की मातृभाषा का सटीक आंकलन नहीं हो पाया। इस पर चिंता जताते हुए मंत्री सोरेन ने नए जिलास्तरीय सर्वेक्षण की घोषणा की है, ताकि सही आंकड़ों के आधार पर शिक्षक बहाली की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
भविष्य की राह
राज्य सरकार का यह निर्णय न केवल शिक्षा व्यवस्था में समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि झारखंड अब अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाने को तैयार है। यदि यह नीति प्रभावी रूप से लागू होती है, तो यह झारखंड को भाषा आधारित शिक्षा के क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में शामिल कर सकती है।
रिपोर्ट : शिवांशु सिंह सत्या