“इरफ़ान : अभिनय की दुनिया का वह सितारा, जो हमेशा चमकता रहेगा”

सिनेमा जगत के उन चंद कलाकारों में से एक, जिन्होंने अभिनय को साधना का रूप दिया, इरफ़ान का नाम आज भी लाखों दिलों में धड़कता है। 29 अप्रैल 2020 को उनके निधन के बाद भी, उनकी अदाकारी का जादू समय के साथ और भी गहराता जा रहा है।

7 जनवरी 1967 को जयपुर, राजस्थान में जन्मे साहबजादे इरफ़ान अली ख़ान ने एक साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। नवाबी खानदान से ताल्लुक रखने के बावजूद इरफ़ान ज़मीन से जुड़े रहे और यही विनम्रता उनके अभिनय में भी साफ झलकती थी। अभिनय का शौक उन्हें राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD), नई दिल्ली तक ले आया, जहां से उन्होंने अभिनय में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया।

शुरुआत छोटे पर्दे से, पर सपना था बड़ा
इरफ़ान ने अपने करियर की शुरुआत टेलीविजन से की थी। ‘श्रीकांत’, ‘भारत एक खोज’, ‘चाणक्य’, ‘किरदार’ और ‘चंद्रकांता’ जैसे चर्चित धारावाहिकों में उनके अभिनय ने उन्हें धीरे-धीरे दर्शकों के बीच पहचान दिलाई।
हालांकि फिल्मों में उनकी पहली उपस्थिति ‘सलाम बॉम्बे!’ (1988) से हुई थी, पर असली सफलता का सफर 2000 के दशक में शुरू हुआ। ‘हासिल’ (2003) और ‘मक़बूल’ (2004) में उनके दमदार अभिनय ने उन्हें सिनेमा के गंभीर दर्शकों का चहेता बना दिया।

देश से विदेश तक छाया था इरफ़ान का जादू
‘नेमसेक’ (2006), ‘लाइफ इन अ मेट्रो’ (2007) और ‘बिल्लू’ (2009) जैसी फिल्मों के जरिए इरफ़ान ने हिंदी सिनेमा में गहरी छाप छोड़ी, वहीं ‘द वारियर’ (2001), ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ (2008), ‘लाइफ ऑफ पाई’ (2012), ‘जुरासिक वर्ल्ड’ (2015) और ‘इन्फर्नो’ (2016) जैसी अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में भी उन्होंने भारतीय अभिनय प्रतिभा का डंका बजाया।

2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। ‘पान सिंह तोमर’ (2012) में उनके यादगार अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला।

सादगी से भरी निजी जिंदगी
इरफ़ान ने NSD में पढ़ाई के दौरान साथी छात्रा सुतापा सिकदर से विवाह किया था। उनके दो बेटे, बाबिल और अयान, हैं। अभिनय के अलावा इरफ़ान को किताबें पढ़ना और क्रिकेट खेलना बेहद पसंद था।
2018 में जब उन्हें न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर जैसी दुर्लभ बीमारी का पता चला, तो भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बीमारी से लड़ते हुए भी वे ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ जैसी फिल्मों में अभिनय करते रहे।

अलविदा कह कर भी रह गए दिलों में जिंदा
29 अप्रैल 2020 को इरफ़ान ने मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनका निधन न केवल भारतीय सिनेमा बल्कि वैश्विक फिल्म जगत के लिए अपूरणीय क्षति थी।
उनकी कला, जीवन के प्रति नजरिया और अभिनय में ईमानदारी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *